एक निरवळो अर सिमरध गद्य सिरज्यो सांवर दइया

मालचंद तिवाड़ी
मालचंद तिवाड़ी
कैयो गयो है कै व्यंग्य री जड़ा करुणा में हुवणी चाइजै। ऐड़ो नीं हुयां व्यंग्य-लेखन ‘सर्वग्राही समकालीनता’ रै धक्के चढ’र जींवतो नीं रैवै। बियां हास्य रचणो ई भाषाई खिमता री दरकार राखै, पण लारै वेदना नीं बोल्यां ऐड़ो लेखन घणो टिकाऊ नीं बण सकै। सांवर दइया रै व्यंग्यकार मांय मसखरी रो मादो अर करुणा री दीठ, दोवूं है। उदाहरण स्वरूप ‘म्हैं रोहीडो बंद करसूं’ में ‘विट’ रै अलावा राजस्थानी रै बधेपै रै नांव फैल्योडी आपाधापी, आळस अर संपादकां री कीर्ति-भूख सूं उपज्योडी खरी पीड़ ई अछानी नीं रैवै।”
एक दूजै व्यंग्य ‘निंदा रस : महारस’ री भाषाई रवानगी देखण जोग है। सोच, संवेदना अर अभ्यास रै एकठ हुयां ई किणी लेखक नै भाषा ऐड़ी बख देवै कै पाठक नै लखावै- गघ पाणी रै ढाळै कळकळ-निनाद्‌ करतो धकै बधै। हिंदी रा ख्यातनांव व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई रै समग्र लेखन मांय सूं अलेखूं गहरी अर व्यंजक ‘सूक्तियां’ एक ठौड एकठ करीजी है। ओ कैवणो घणो सुखद है कै सांवर दइया रै व्यंग्य-लेखन मांय ई आ खिमता सिद्ध हुंवती लकावै। ‘निंदा रस : महा रस’ रा ई दोय वाक्य है: ‘आम आदमी जिण नै निंदा कैवै विद्‌वान उणनै आलोचना कैवै।’ अर ‘चुगली निंदा रो जेबी संस्करण है।’
अध्ययन अर जाणकारी रै लेखै ई सांवर दइया राजस्थानी रा अणगिणत लेखकां माथै भारी पड़ता लखावै । आपरो निसाणो साधण सारू लियोड़ा वांरां संदर्भां सूं वां रै अध्ययन-मनन अर संवेदना रै विस्तार रो अंदाजो हुवै ।
सांवर दइया रै गद्य रो दायरो वैविध्य री दीठ सूं घणो लूंठो है । सिरै कहाणीकार तो सांवर दइया मानीजै है, पण राजस्थानी रै आधुनिक गद्य रै निर्माण में भाषा नै नुंवी सिरजणा रै लेखै परोटण री दीठ सूं म्हैं वांरै व्यंग्य लेखन नै सवायो मानूं । वांरै व्यंग्य में नुंवै राजस्थानी गद्य री अलेखूं मुद्रावां देखण नै मिलै । छोटा, सूत्रात्मक वाक्यां सूं लेय’र लांबा जटिल ’पंक्चुशंस’ साधता थका पैराग्राफ ई लाधै । इंयां लखावै कै आपरै व्यंग्य-लेखन में सांवर दइया वाकई एक निरवळो अर सिमरध गद्य सिरज्यो है, जिण रो मोल स्यात साहित्य रो इतिहास कदैई कूंतैला ।
इण पोथी में सांवर दइया राजस्थानी नै नुवै गद्य री दीठ सूं एक सिमरध अर समर्पित शिल्पी रै रूप सामीं आवै । वांरा इक्यावन व्यंग्य एक ठौड़ मिलणो पाठकां री सोरप रै सागै सागै राजस्थानी साहित्य शोधकर्तावां सारू ई घणा महताऊ है । इण पोथी रो राजस्थानी साहित्य में जोरदार स्वागत हुयसी, इण में जाबक ई शक नीं है ।
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